Sunday, April 13, 2014

हास्‍य-व्‍यंग --- मैं केजरीवाल हूं

हास्‍य-व्‍यंग
मैं केजरीवाल हूं
   अम्‍बा चरण वशिष्‍ठ
अब तो मैं समझता हूं कि अन्‍ना की बात न मानकर एक पार्टी बना ली, वह अच्‍छा ही किया। वैसे तो मैं चाहता था कि कुछ समय और प्रतीक्षा कर लूं तो अन्‍ना की सारी विरासत का मैं ही अकेला हकदार बन सकता हूं। अन्‍ना को मुझ पर बड़ा भरोसा था और मुझे उनसे बहुत आस। पर सबर की भी तो कोई हद होती है। आखिर मैं कितना इन्‍तज़ार करता\
फिर बुरा भी क्‍या हुआ\ अन्‍ना के हर पुन्‍य का फल तो मेरे ही हाथ लगा। अब तो उनके पास न अपना कमाया पुन्‍य है और न मैं ही। मुझे कई बार उनकी हालत पर दु:ख भी होता है। तर्स भी आता है। वह कितने अकेले पड़ गये हैं। उन्‍हें देखने — मेरा मतलब उन्‍हें रास्‍ता दिखाने वाला — अब कोई उनके पास नहीं रह गया है। वह दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं मेरे बिना — कभी ममता दीदी के पास तो कभी किसी और के पास। उनका साथ तो मेरे जैसे सभी छोड़ चुके हैं। पर मैं क्‍या करूं\ मैं सारी उम्र उनकी तरह सन्‍त-फकीर बन कर तो नहीं जी सकता था\ मेरे तो बीवी-बच्‍चे भी हैं। उनका भी ध्‍यान रखना है। अन्‍ना का क्‍या है\ उनको तो बस देश और भ्रष्‍टाचार के बारे ही सोचना है।
खैर, ईश्‍वर जो कुछ करता है अच्‍छा ही करता है। पहले मैं नास्तिक था। ईश्‍वर पर विश्‍वास नहीं करता था। पर दिल्‍ली के चुनाव परिणाम के बाद तो मुझे पूरा विश्‍वास हो गया कि जब ईश्‍वर देता है तो छप्‍पर फाड़ कर देता है। उसने मुझे सत्‍ता के द्वार पर खड़ा कर रख दिया। तब मुझे पता चल गया कि ईश्‍वर भी कोई चीज़ है जो मुझ जैसे आम आदमी को भी राजा बना सकती है। मैं कभी मुख्‍य मन्‍त्री बन जाऊंगा, यह तो मैंने सपने में भी नहीं सोचा था। पर ईश्‍वर ने तो यह सच कर दिखाया। अब तो मुझे ईश्‍वर पर भी पूरा विश्‍वास हो गया है।
असल में चुनाव के दंगल में तो मैं शुगल के तौर पर ही चला गया था। मैं तो तमाशा देखना चाहता था। पर लोगों ने मुझे ही  अखाड़े में ही धकेल दिया। मैं भी चला गया। मुझे अपने पर भरोसा था — अपनी कलाबाजि़यों पर। मैंने भी सोचा कि अगर दाल न गली तो मैं पिछले दरवाज़े से चुप से भाग निकलूंगा। हमें कहां उम्‍मीद थी कि किसी दिन सरकार भी बनानी पड़ सकती है। वैसे ठीक ही हुआ कि जब हमने अपना चुनाव घोषणापत्र बनाया उस समय अन्‍ना हमारे साथ नहीं थे। वरन् तो बह हर बिन्‍दू पर हमारा हाथ पकड़ कर बैठ जाते कि जनता को दिन में सपने मत दिखाओ, तुम वादा पूरा नहीं कर पाओगे। हमने भी मतदाता को उनकी सेवा व मनोरंजन के लिये चांद-सितारे तक ला देने का वादा कर दिया। हमें तो पूरा भरोसा था कि ऐसी नौबत आयेगी ही नहीं कि जनता हमें वादों को पूरा करने को कहेगी। मैं तो पूरा प्‍लान बना बैठा था कि तब हम इसी आम आदमी को चिढ़ायेंगे कि यदि तुमने हमें सेवा का मौका दिया होता तो हम सब कुछ कर दिखाते जो हमने वादा किया था। तब जनता अपना माथा पीट लेती कि उसने इतनी बड़ी गलती क्‍यों कर दी।
अब मैं मानने लगा हूं कि जनता ईश्‍वर का ही रूप होती है। यही हमारे साथ हुआ। 28 सीटें देकर ईश्‍वर ने हमें ऐसी स्थिति में खड़ा कर दिया कि किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला और हमारे सिवाय कोई अन्‍य दल सरकार बना नहीं सकता था। कोई भी भाजपा का पल्‍लू नहीं पकड़ सकता था क्‍योंकि वह तो जाना माना साम्‍प्रदायिक दल है। हमें समर्थन देना कांग्रेस की नैतिक मजबूरी थी क्‍योंकि हम ही ने तो भाजपा को सत्‍ता में आने से रोका था। यदि हम न होते तो भाजपा तो दो तिहाई मत से सरकार बनाती और कांग्रेस की तो और भी नाक कट जाती। कांग्रेस तो हमारे एहसान के नीचे दबी पड़ी थी। पर इन हालात ने तो हमें ही फंसा कर रख दिया। सरकार बनायें या न बनायें के प्रश्‍न पर तो आगे खाई चीछे कुआं वाली बात थी। बाहर कहने की बात और होती है। सच्‍च तो यह भी है कि सत्‍ताभोग किस को बुरा लगता है\ रसगुल्‍ला चाहे ज़बरदस्‍ती ही मुंह में डाल दिया जाये, कड़वा तो कभी नहीं लगता। अन्‍ना को भी बुरा नहीं लगा था। उनको भी हमें अपनी शुभकानायें भेजनी ही पड़ीं थी़।
लोग मुझ पर तोहमत लगाते हैं कि तुमने बहुत घटिया काम किया। तुमने अपने बच्‍चों की कसम खाई थी कि तुम न तो भ्रष्‍ट कांग्रेस और न सांप्रदायिक भाजपा को समर्थन दोगे और न लोगे। मैंने तो इस ग़लतफहमी में कसम खा ली थी कि ऐसी नौबत आयेगी ही नहीं। यहां ईश्वर ने मुझ से बड़ा अन्‍याय कर दिया। मुझे न जनता को मुंह दिखाने लायक रखा और न बच्‍चों को।
पर मैंने भी कच्‍ची गोलियां नहीं खेल रखीं। व्‍यक्ति मैं चाहे आम आदमी का ही हूं पर हूं तो राजनीति का आदमी। मैं आम आदमी हूं और जनता भी आम आदमी। सो मैंने अपने बच्‍चों को समझा-फुसला दिया कि मैंने कसम तुम्‍हारी नहीं, आम आदमी के बच्‍चों की खाई थी। पर मेरे बच्‍चे मुझसे भी आगे निकले। कहने लगे कि पापा वीडियो में तो स्‍पष्‍ट हमारी ही कसम खाई थी। हमने तो स्‍वयं देखा और सुना था। तब मैंने उन्‍हें समझाया कि मैंने आम आदमी का नाम इतनी होशियारी से आहिस्‍ता से लिया था कि यह न कोई देख सका, न सुन सका। बच्‍चे सन्‍तुष्‍ट हो गये। समझ गये। समझदार हैं। आखिर बच्‍चे भी तो मेरे हैं न। ईश्‍वर उनको लम्‍बी आयु दे, उनकी रक्षा करे।
आज तक सब से चाहे वह सोनियाजी के दामाद हों या शीला दीक्षित, नरेन्‍द्र मोदी हों या मुकेश अम्‍बानी, अन्‍य कोई और नेता हो या उद्योगपति, मैंने सब से प्रश्‍न ही पूछे हैं। बहुतों के पास तो उनका जवाब भी नहीं। पर अब मुझे हैरानी होती है कि जब से मैंने मुख्‍य मन्‍त्री का पद छोड़ा है, लोग मुझ से ही सवाल करने लगे हैं। मैं क्‍यों जवाब दूं\ मेरा तो धर्म केवल प्रश्‍न पूछना है। उत्‍तर तो मेरे विरोधियों को देना है। पर लोग यह परम्‍परा समझते ही नहीं। अब तो मैंने एक रास्‍ता निकाला है। मैं सवाल करने का पेटैन्‍ट ही अपने नाम करवा लूंगा। फोर्ड फाऊंडेशन वाले तो अपने ही आदमी हैं। वह अमरीका में सवाल करने का पेटैन्‍ट मेरे नाम करवा देंगे। तब न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी। फिर मैं देखता हूं कि मेरे विरोधी कैसे मुझ से प्रश्‍न करते हैं। मेरे पेटैन्‍ट का उल्‍लंघन करने के आरोप में मैं उन पर अमरीका में मुकद्दमा ठोक दूंगा। अपने विरोधियों की तो मैं इस तरह बोलती ही बन्‍द कर दूंगा।
लोग मुझ पर उंगली उठा रहे हैं कि मैं अब लोकपाल की बात क्‍यों नहीं करता\ भ्रष्‍टाचार समाप्‍त करने की कसमें क्‍यों नहीं खाता\ उल्‍टे लोग मुझ पर ही उंगली उठाने लग पड़े हैं। मैं कहता हूं कि मैं इसीलिये ईमानदार हूं कि मैं दूसरो पर भ्रष्‍टाचार के आरोप लगाता हूं। आरोप लगाने के हक का भी मैं पेटैंट स्‍वयं  अपने की नाम करवा लेना चाहता हूं ताकि यह झगड़ा भी सदा-सदा के लिये समाप्‍त हो जाये।
लोग मुझ से पूछते हैं कि तूने राहुल के खिलाफ चुनाव में कुमार विश्‍वास उतार दिया। मोदी के खिलाफ तो तुम खुद ही खड़े हो गये हो। तुम सोनियाजी के मुकाबले स्‍वयं क्‍यों नहीं खड़े हो गये\ लोग समझते नहीं कि मैं अकेली जान किस-किस के विरूद्ध चुनाव लड़ूंगा\ मैं यह कैसे भूल जाऊं कि दिल्‍ली का मुख्‍य मन्‍त्री मैं उनकी ही कृपा से ही बना था। मैं इतना एहसान फरामोश नहीं हूं। फिर मैं यह भी तो जानता हूं कि एक घर तो डायन भी छोड़ देती है। मैं तो डायन भी नहीं हूं।
अब देखो कोई न कोई मुझ पर स्‍याही फैंक दे रहा है। कईयों ने तो हद कर दी। मुझे हार पहनान के बहाने मेरी गाल पर थप्‍पड़ ही थमा दे रहे हैं। पर मैं भी गांधीजी का अनन्‍य अनुयायी हूं। मैंने अपनी सारी राजनीति उनकी समाधि पर प्रणाम करने के बाद ही शुरू की थी। मैं तो बड़े दिल वाला हूं। इसीलिये मुझ पर स्‍याही फैंकने वाले को मैंने अपनी पार्टी का सदस्‍य बना कर उसका सम्‍मान किया। यह भी तो जानता हूं कि मुझ पर हाथ उठाने वाल भी आम आदमी है और मैं भी आम आदमी। सो मैं सब कुछ सह लूंगा। उफ नहीं करूंगा। मैं तो देश के लिये कुर्बान होने के लिये आया हूं। आम आदमी जानता है कि किस प्रकार मैं ने मुख्‍य मन्‍त्री पद को लात मार कर कुर्बानी दी थी। इतनी बड़ी कुर्बानी आज तक कोई नहीं दे सका। यह केवल मैं केजरीवाल ही कर सकता हूं। मेरे जैसा कोई और माई का लाल पैदा नहीं हुआ।
ऐ-ऐ क्‍या कर रहे हो\ मुझे धक्‍का क्‍यों दे रहे हो\
मैं धक्‍का नहीं, हिला कर तुम्‍हें उठा रही हूं। लो चाय पी लो।
पर मैं केजरीवाल।
क्‍या केजरीवाल-केजरीवाल रटे जा रहे हो\ तुम केजरीवाल नहीं। मैं तुम्‍हारी पत्नि हूं। चाय पकड़ो हाथ में। सपने में पता नहीं क्‍या बड़-बड़ाते रहते हो\ जल्‍दी उठो। आफिस नहीं जाना है\

पत्नि की कड़क आवाज़ ने समझा दिया कि वह तो सपना था। यथार्थ तो बीवी की कड़कती आवाज़ ही है।

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