Saturday, November 12, 2016

हास्‍य-व्‍यंग हाये, यह कैसे हो गया पेशाब

हास्‍य-व्‍यंग
      कानोंकान नारदजी के  
हाये, यह कैसे हो गया पेशाब   

मुझे बड़े ज़ोर से पेशाब आ गया। पर नज़दीक कोई पेशाबघर दिखाई नहीं दे रहा था। मैं बड़ी देर इधर-उधर ढूंढता रहा। कुछ पी भी रखी थी जिस कारण मेरे पांव भी लड़खड़ा रहे थे। शराब की बोतल खरीदी और उससे जेब भी खाली हो गई थी। अब चारा केवल लोकल बस लेने का ही रह गया था। आये पेशाब के कारण मैं इतना परेशान था कि मुझे लग रहा था कि अब तो कहीं मेरा ब्‍लैडर ही न फट जायेगा। हार कर मैं सड़क के एक कोने पर गया जहां अंधेरा था। मैंने वहीं पेशाब करना शुरू कर दिया। शुरू तो हो गया पर अब बन्‍द होने में ही नहीं आ रहा था।अभी मैं अपनी पैंट की जि़प्‍प बन्‍द ही कर रहा था कि मुझे किसी ने पीछे से धक्‍का दे दिया। मैं मुंह के बल गिर गया। उसने पांव से मेरी पैंट खींच ली। मैं नंगा हो गया। ग़लती से उस दिन मैंने अंडरवीयर भी नहीं पहन रखा था। ऊपर से उसने और साथियों ने मुझे जूतों से पीटना शुरू कर दिया। यह पेशाब करने की जगह है? वह चिल्‍ला रहे थे। तू तो शहर को गन्‍दा कर रहा है।
इतने में राह चलते कुछ लोग इकठ्ठा हो गये और पूछने लगे कि क्‍या हुआ? मैं इन हितैषियों की बातें व सहानुभूति को दरकिनार कर उन लोगों के पीछे नंगा ही भागने लगा जो मेरी पैंट को लेकर भाग रहे थे। मैं उनसे माफी मांग रहा था और पैंट देने केलिये गिड़गिड़ा रहा था। बहुत दूर भागने के बाद वह मेरी पैंट फेंक कर भाग गये। मैंने पैंट पहनी और थोड़ी देर सुस्‍ताने बैठ गया। इस बीच मेरा नशा भी उतर गया।
लोग इकट्ठा हो गये। मुझ से मेरी दास्‍तान पूछने लगे। मैंने सब कुछ बता दिया। उन्‍हें मेरे साथ सहानुभूति हो गई। कुछ नारे लगाने लगे – यह गुण्‍डागर्दी नहीं चलेगी, नहीं चलेगी। उन्‍होने मुझे घर छोड़ दिया।
पिताजी ने जब मेरी हालत देखी तो मुझे पूछा कि हुआ क्‍या? जब मैंने सब कुछ बता दिया तो उल्‍टा वह मुझ पर ही नाराज़ होने लगे। शराब पियेगा, सार्वजनिक स्‍थानों पर कुत्‍तों की तरह पेशाब करेगा तो ऐसा ही होगा।
थोड़ी देर बाद मैंने देखा कि मेरे घर को पुलिस वालों ने घेर लिया है। मैं और मेरा परिवार घबरा गये। मैंने सोचा पुलिस मुझे पकड़ने आ गई। उधर मैंने नारे सुने – लल्‍लू को इन्‍साफ दो। गुण्‍डों को पकड़ो। जेल में डालो। गुण्‍डागर्दी नहीं चलेगी, नहीं चलेगी।
फिर क्‍या था। धड़ाधड़ लोग मेरे घर आने लगे। सहानुभूति प्रकट करने लगे।  मुझे ढारस बंधाने लगे कि तुझे न्‍याय दिला कर रहेंगे। तुम मत घबराओ। तुम्‍हारी लड़ाई हम लड़ेंगे। तुम अकेले नहीं हो। हम तुम्‍हारे साथ हैं। मुझे समझ न आये कि गलती मुझ से हुई थी या किसी और से। खैर, मेरे पास तो अब समय न था सोच पाने का जब घर में इतने लोग आ गये हों। इतने लोग तो मेरी शादी में भी नहीं आये थे। मैंने अपनी बीवी को सब को चाय पिलाने केलिये कहा। चार जायें तो छ: आयें। यह सिलसिला चलता रहा। घर में बैठने की जगह कम हो गई। लोगों को खाट पर बिठाना पड़ा। जनता इतनी हो गई कि दो तो मेरी खाटें ही टूट गईं। मेरी परेशानी देख एक नेता ने ढारस बंधाई। घबराओ नहीं। एक राजनीतिक रैली से मैं चार खाटें उठा लाया था। दो तुम्‍हें भेज देता हूं।
हर राजनीतिक पार्टी के लोग अपने नेताओं और वर्करों के साथ आने लगे। सभी इस घृणित घटना में अपने विरोधियों का हाथ बताने लगे।
मैंने उन महानुभावों को बताया कि ग़लती मुझ से ही हुई थी। मैाने शराब भी पी थी और खुले में पेशाब भी कर दिया था। वह मेरी पीठ थपथपा कर कहते – तो क्‍या हो गया? आजकल कौन शरीफ आदमा शराब नहीं पीता? खुले में पेशाब कर दिया तो क्‍या? किसे पेशाब नहीं आता? फिर सरकार ने कौनसे चप्‍पे-चप्‍पे पर पेशाबघर बना रखे हैं?
दूसरा बोला – यदि कोई कुत्‍ता खुले में शौच कर दे तो कोई जुर्म नहीं। किसी की गाड़ी, दीवार पर पेशाब कर दे तो कोई बात नहीं। यही काम मानव कर दे तो अपराध। उसे जूतों से पीट डालो। कहां का इन्‍साफ है यह?
यह तो सरासर मानवों द्वारा ही मानवों के विरूद्ध भेदभाव की मिसाल है – तीसरा बोला।
भाई साहब, चौथा बोला – आप घबराओ मत। मानव के प्रति इस भेदभाव के मामले को तो मैं राष्‍ट्रीय मानवाधिकार आयोग के समक्ष उठाऊंगा।
अभी बात चल ही रही थी कि पुलिसवाले आ धमके। सबको कहने लगे कि उठो, हो गया। जगह खाली करो। सीएम साहब, आ रहे हैं। 
मुझे विश्‍वास नहीं हुआ। मैंने कहा – आप क्‍यों मज़ाक कर रहे हैं? मैं जब परेशान था और उन्‍हें मिलने गया था। तब तो उन्‍होंने मुझे मिलने से इनकार कर दिया था। अब वह मेरे घर खुद ही कैसे आयेंगे?
इसलिये कि तुम्‍हारे साथ अन्‍याय हुआ है। हमारे सीएम साहब अन्‍याय कभी बर्दाश्‍त नहीं करते। 
सीएम साहब पहुंचे। मैं उनके अभिवादन के लिये उठने ही लगा कि उन्‍होंने मुझे कंधे से पकड़ कर बिठा दिया – बैठे रहिये। आपको उठने की ज़रूरत नहीं। आप औपचारिकता में मत पडि़ये। आपको तो बहुत चोट आई है। आपको आराम की ज़रूरत है।
अपने एक अधिकारी को इशारा कर उससे एक चैक लिया और मेरे हाथ थमा दिया। बड़ी विनम्रता से बोले – यह हमारी ओर से थोड़ी सी सहायता। वैसे वह आदमी कौन थे?
मैं उनके विनम्र व्‍यवहार से भावुक हो उठा। रूंधे गले से कहा – सरकार, मैं तो उनकी शक्‍ल भी न देख सका। वह भाग गये।
वह कड़क होकर बोले – देखो यह प्रधान मन्‍त्री मोदी की साजि़श है। वह आम आदमी विरोधी हैं। सब पर अत्‍याचार करवा रहे हैं। हम आम आदमी हैं। उन अपराधियों को पाताल से भी ढूंढ कर लायेंगे।
फिर साथ खड़े एक व्‍यक्ति को बोले जो शायद कोई अधिकारी   था या मन्‍त्री – इनके बेटे को नौकरी भी दे दो। उसने उत्‍तर में कहा – जैसा आपका आदेश, सरकार।
मैं बीच में ही बोल बैठा – सरकार, वह तो छोटा है और पढ़ा भी कम।
जिस व्‍यक्ति को उन्‍होंने आदेश दिया था उसने बड़े प्‍यार से मुझे डांटते हुये समझाया – चुप, सरकार के आगे नहीं बोलते। सरकार के लिये कुछ मुश्‍किल नहीं है। वह सब कुछ कर सकते हैं।
इतनी देर में एक और दल आ गया। वह नारे लगा रहे थे कि दलितों का शोषण नहीं होने देंगे, नहीं सहेंगे। मैंने उनके नेता को बताया कि मैं और मेरा परिवार दलित वर्ग से नहीं हैं। उसे गुस्‍सा आ गया। उसने कहा यही तो कारण है कि हम दलितों का शोषण रूक नही पा रहा। हम दलित तो हैं पर मानने को तैय्यार नहीं। हमें शर्म आती है। यही कारण है कि उच्‍च जाति के लोग हम पर ज़ुल्‍म भी ढाते हैं पर हम उफ नहीं करते। चुप रहते हैं और हमारा बराबर शोषण होता जा रहा है। तुम दलित थे इसीलिये तो तुम सड़क पर चल रहे थे और तुमने एक किनारे पेशाब किया। तुम भी बड़ी जाति के होते तो न तुम पैदल चलते और न सार्वजनिक स्‍थल पर मूत्र ही करते। हम तुम्‍हारे साथ हुये अन्‍याय के विरूद्ध ऊंची आवाज़ उठायेंगे।
इतने में कुछ लोग मेरे कमरे में आ धमके। ज्‍़यादातर युवक थे। बोले – देश के महान् नेता जो प्रधान मन्‍त्री होते यदि जनता ने विश्‍वासघात न किया होता। लोग उनके चुकटले बहुत सुनाते हैं। यही उनकी लोकप्रियता की निशानी है। जिन्‍हें अभी तक उनके दर्शन करने का सौभाग्‍य प्राप्‍त नहीं हुआ, वह भी उन्‍हें जानते और पहचानते हैं क्‍योंकि वह सब के दिल में बस्‍ते हैं। इतनी देर में वह आ ही गये। मुस्‍कराते हुये बोले – भैय्या, मैं अब आ गया हूं। तुम्‍हें घबराने की कोई बात नहीं है। अब समझो कि तुम्‍हें न्‍याय मिल ही गया। सरकार को जब पता चलेगा कि मैं आपका हालचाल पूछने गया था, वह तो यह सुनकर ही डर जायेंगे और तुम्‍हें इन्‍साफ मिल जायेगा। उनके साथ आये सभी ने अपना सिर हिलाकर अनुमोदन किया और ज़ोर से तालियां बजा दीं।                   
वह एकदम उठ खड़े हुये और जाने लगे। फिर मुड़े और एक साथी की ओर इशारा करते हुये मुझे कहा – ये कल आपको सहायता का एक चैक पहुंचा देंगे। और ज़रूरत होगी तो बता देना। हम पूरी सहायता करेंगे।
कुछ पार्टी के नेता तो मुझे कह गये कि हम तुम्‍हें अपनी पार्टी के टिकट पर विधान सभा या लोक सभा का चुनाव लड़ायेंगे। तुम डटे रहना।
मैंने पिताजी का कहा कि मकान की बत्तियां बुझा दो ताकि कोई और न आये। मैं बहुत थक गया हूं। मार भी बहुत खाई है।
पिताजी ने सहानुभूति तो क्‍या दिखानी, मुझे एक ज़ोर का झापड़ मार दिया। मैं रो पड़ा। बोला – मैं पहले ही मार खा कर आया हूं। अब आपसे मार खानी बाकी थी।
पिताजी बोले – पाजी, तूने कोई काम समय पर नहीं किया। जो जूते व मार आज खाई अगर पहले खाई होती तो हमारी ग़रीबी तो बहुत पहले खत्‍म हो हो गई होती और आज तक रोटी के लिये न तरसते। 
ओह, यह क्‍या हुआ? मेरी तो पैंट गीली हो गई है। मैंने हाथ लगाया तो गीला हो गया। सूंघा तो पेशाब की बदबू आ रही थी। बिस्‍तर से भी दुर्गन्‍ध आ रही थी। हाय, हाय यह क्‍या हुआ? मुझसे पेशाब हो गया? मैं दहाड़-दहाड़ कर रोने लगा। तो क्‍या यह सब सपना था?
घर के सब इकट्ठे हो गये। बच्‍चे ताली बजा कर हंसने लगे – बापू ने बिस्‍तर में ही पेशाब कर दिया।            
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Courtesy: Uday India Weekly (Hindi)

हास्‍य-व्‍यंग सर्जिकल स्‍ट्राइक पाकिस्‍तान पर, दर्द कुछ भारतीय नेताओं के पेट में

हास्‍य-व्‍यंग              
         कानोंकान नारदजी के
सर्जिकल स्‍ट्राइक पाकिस्‍तान पर, दर्द कुछ भारतीय नेताओं के पेट में


बेटा:   पिताजी।
पिता:  हां बेटा।
बेटा:   आपको पता है कि भारतीय सेना ने पाक अधिकृत कश्‍मीर में घुस कर पाकिस्‍तान द्वारा चलाये जा रहे आतंकियों के अड्डों पर चुपचाप धावा बोल दिया और आतंकियों के लगभग 8-9 ठिकानों को तबाह कर दिया। इस आप्रेशन में लगभग 50 आतंकवादियों को मारकर ऊरी पर उनके हमले का बदला भी ले लिया है।  
पिता:  बेटा, यह तो देश के बच्‍चे-बच्‍चे को पता चल गया है। सब का सीना गर्व से तन गया है। सब को अपनी सेना की बहादुरी पर नाज़ है। सब अपने प्रधान मन्‍त्री मोदीजी पर भी गर्व कर रहे हैं कि उन्‍होंने पहली बार सेना को ऐसा कर देने के लिये झण्डी दिखाने की हिम्‍मत दिखाई।    
बेटा:   हां पिताजी, मोदीजी ने दिखा दिया कि उनकासीना कहने को ही 56 इंच का नहीं है, करने की हिम्‍मत दिखाने को भी है।
पिता:  बेटा, ऐसा पहली बार हुआ है। अब तक तो पाकिस्‍तान यही समझता फिरता था कि भारत धमकी देने में तो बड़ा दिलेर है पर कुछ कर दिखाने में नहीं। उन्‍हें तो यक़ीन हो गया था कि जो बादल बरसते हैं वह बरसते नहीं।  
बेटा:   पर मोदीजी ने पाकिस्‍तान का यह भ्रम तोड़ दिया। अब वह सकते में है। उसे यह समझ नहीं आ रहा कि वह क्‍या करे और क्‍या न करे।
पिता:  उल्‍टे इस विपदा की घड़ी में उसके मित्र देश भी उसके साथ खड़े नहीं हो रहे। वह अलग-थलग पड़ गया है।
बेटा:   पर पिताजी, पाकिस्‍तान के प्रधान मन्‍त्री नवाज़ शरीफ तो कह रहे हैं कि भारत ने कोई सर्जीकल धावा बोला ही नहीं। केवल सीमा पर एक छोटी सी फाइरिंग हुई है जिसमें उसके दो सिपाही ज़खमी हुये।  
पिता:  बेटा, झूठ ही तो पाकिस्‍तान की फितरत है, उसकी शक्ति। उसने तो कभी माना ही नहीं कि उसकी हार हुई है न 1965 में, न 1971 में और न कारगिल युद्ध में। जब उसकी फौजें पीछे हट रही होती हैं तो वह रेडियो और टीवी पर बड़े ज़ोर से दावा करता है कि उसकी फौजें विजय ही राह पर बड़ी तेज़ी से आगे बढ़ रही हैं।   
बेटा:   यह तो पिताजी मेरे को भी पता है कि पाकिस्‍तान इन तीनों लड़ाइयों में हारा है।
पिता:  फिर तू पाकिस्‍तान के इस झूठ पर क्‍यों वियश्‍वास कर रहा है?
बेटा:   पिताजी, मैं विश्‍वास नहीं कर रहा हूं। यह तो कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता संजय निरूत्‍तम, पी चिदम्‍बरम व दिगविजय सिंह बोल रहे हैं। उन्‍होंने मांग की है कि पाकिस्‍तान के प्रापेगण्‍डा को झूठा साबित करने के लिये सेना सबूत पेश करें। 
पिता:  तू फिज़ूल की बातें मत करा कर ग़ैरजि़म्‍मेदाराना। तभी मुझे तेरे पर ग़ुस्‍सा आता है। यह तो हो ही नहीं सकता। कांग्रेस तो सदा ही एक देशभक्‍त पार्टी रही है। उसके नेता तो ऐसी भाषा बोल ही नहीं सकते। तूने पाकिस्‍तान के नेता को ऐसा बोलता देखा होगा और तू मुझे बता रहा है कि कांग्रेस के ये महान् नेता कह रहे थे।
बेटा:   पिताजी, आप मुझ पर फिज़ूल में नाराज़ हो रहे हैं। आप मुझे इतना बुद्धू समझते हैं कि मैं भारतीय और पाकिस्‍तानी नेताओं में फर्क नहीं समझता। मैंने कांग्रेस के इन सम्‍माननीय नेताओं को टीवी पर और अखबार में छपे उनके ब्‍यानों और फोटो को एक बार नहीं हज़ार बार देखा है। जो मैं कह रहा हूं वह सब उन्‍होंने ही कहा है। मैं टीवी लगा देता हूं। आप अपनी आंख से देख लो और अपने कान से सुन लो। 
पिता:  पर बेटा, मुझे तो यह सब देख और सुनकर अब भी विश्‍वास नहीं हो रहा।
बेटा:   विश्‍वास तो पिताजी मुझे भी नहीं हो रहा था। मैंने पहले सोचा कि यह कोई पाकिस्‍तानी होंगे क्‍योंकि पाकिस्‍तान के शासक और नेता ऐसा ही कुछ बोल रहे हैं। पर मैंने जब अपनी आंखें फाड़-फाड़ कर देखा और कान खरोद कर सुना तो मैं भी हैरान रह गया। ये हमारे देशभक्‍त किसकी भाषा बोल रहे हैं?
पिता:  बेटा, ऐसा तो किसी देश के नेता नहीं करते। न ऐसा अमरीका में हुआ, न इंगलैण्‍ड में और न फ्रांस में जहां ऐसी घटनायें हुईं। 
बेटा:   इसी कारण तो मैं परेशान हूं।
पिता:  हमारे देश में भी बेटा, कभी ऐसा नहीं हुआ। 1965 और 1971 के युद्धों में भी पाकिस्‍तान रेडियो रोज़ दावा करता जा रहा था कि उसने भारत के मीलों इलाकों पर भारत की सेना को खदेढ़ कर कब्‍ज़ा कर लिया है। पर भारत के हर नेता व नागरिक ने वही माना जो हमारी सरकार या सेना कह रही थी। श्री अटल बिहारी वाजपायी ने तो 1971 के युद्ध के दौरान यहां तक कह दिया था कि आज देश में और कोई नेता नहीं है। केवल एक नेता है और वह हैं श्रीमति इन्दिरा गांधी और सारा देश उनके पीछे है।      
बेटा:   पिताजी, तब भी विपक्ष ने मांग की थी कि पाकिस्‍तान के प्रापेगण्‍डा को झूठा साबित करने के लिये तत्‍कालीन प्रधान मन्‍त्री शास्‍त्रीजी या इन्दिराजी भारत की विजय के सबूत पेश करें? 
पिता:  नहीं बेटा। तब तो ऐसी घटिया बात कोई पार्टी या नागरिक सोच भी नहीं सकता था।  
बेटा:   यही नहीं पिताजी। हमारे दिल्‍ली के मुख्‍य मन्‍त्री केजरीवाल भी कांग्रेसियों से पीछे नहीं हैं। उनकी भाषा भी यही है।
पिता:  बेटा, उनकी तो बात ही छोड़ो। 
बेटा:   क्‍यों पिताजी? आखिर वह हमारे सम्‍माननीय मुख्‍य मन्‍त्री हैं।
पिता:  वह दिल्‍ली को तो सम्‍भाल नहीं पाते पर सारे देशों, सारे विश्‍व का बोझ उनके कन्‍धे पर है। लगता है जैसे सारी दुनिया की चिन्‍ता केवल उनको ही है। वह तो ऐसा दिखाना चाहते हैं मानो सारे विश्‍व की राजनीति व कूटनीति पर केवल इनका ही अधिकार है। वह सारी दुनिया व विश्व के सारे नेताओं को नासमझ समझते हैं।    
बेटा:   पिताजी, उन्‍होंने एमटैक कर रखी है।
पिता:  जहां तक मेरी छोटी सी जानकारी है एमटैक में राजनीति व विश्व कूटनीति नहीं पढ़ाई जाती।
बेटा:   पिताजी, कांग्रेसी नेताओं की तरह उनकी भाषा भी वही लगती थी जो पाकिस्‍तान बोल रहा है। वह भी वहीं मांग कर रहे थे जो पाकिस्‍तान कर रहा था।
पिता:  केजरीवालजी एक बहुत बड़े महत्‍वाकांक्षी नेता हैं। वह अपनी पार्टी का विस्‍तार बड़ी तेज़ी से करना चाहते हैं।
बेटा:   तो क्‍या वह अपनी पार्टी को एक अन्‍तर्राष्‍ट्रीय दल बना देंगे और उनकी पार्टी वहां चुनाव भी लड़ेगी?
पिता:  बेटा,  उनके नेतृत्‍व में सब कुछ सम्‍भव है। 
बेटा:   पर अब तो कुछ समाचार चैनलों ने पाकिस्‍तान के विरूद्ध की गई कार्रवाई की वीडियो भी जारी कर दी है। अब ये आप और कांग्रेस वाले क्‍या कहेंगे?
पिता:  वह इतनी जल्‍दी सन्‍तुष्‍ट होने वाले नहीं हैं, बेटा। वरन् उन्‍हें तो जनता से क्षमा मांगनी पड़ेगी। वह तो कह सकते हैं कि तसवीरों से यह साबित नहीं होता कि वह क्षेत्र पाकिस्‍तान था और फौज हमारी थी।
बेटा:   तब तो इसका कोई अन्‍त नहीं हो सकता। ‘’मैं न मानूं’’ पालिसी तो कहीं तक भी जा सकती है।  
पिता:  हमारी राजनीति की यही तो खासियत है।
बेटा:   यह तो है पिताजी। यदि कोई नेता मुझे कहे कि तू यह साबित कर कि तेरा नाम यही है तो मैं यह कैसे साबित कर सकता हूं?
पिता:  तू अपना प्रमाणपत्र दिखा देना।
बेटा:   पिताजी जब मैं अपना व आपका नाम बताऊंगा तो वह कह देंगे कि इन दोनों नामों के कई व्‍यक्ति हैं। तू साबित कर कि तू यही है।
पिता:  बेटा, तब तू अपना करैक्‍टर सर्टिफिकेट दिखा देना।
बेटा:   तब वह बोल देंगे कि स्‍कूल वाले तो हर एक को सर्टिफिकेट दे देते हैं कि इसका चालचलन बड़ा उच्‍च व आदर्श है पर बाद में निकलते हैं बहुत सारे बदमाश ही। 
पिता:  तो फिर बेटा ऐसा शक तो हर पर ही किया जा सकता है। यही प्रश्‍न तो उस प्रश्‍नकर्ता व हर नेता से भी किया जा सकता है। 
बेटा:   तब वह इसे बेहूदा और अपमानजनक प्रश्‍न बता कर शोर मचा देंगे।
पिता:  वैसे तो दावा कांग्रेस ने भी कर दिया है कि यूपीए शासनकाल में भी सर्जिकल स्‍ट्राईक कई बार की गई थीं। 
बेटा:   पर उन्‍होंने वह साक्ष्‍य प्रस्‍तुत नहीं किये जो आज वह मोदी सरकार से मांग रहे हैं। सेना ने तो इसका खण्‍डन कर दिया है।
पिता:  तो क्‍या हुआ? वह बड़ी आसानी से मोदी सरकार पर आरोप लगा देंगे कि वह सेना को साक्ष्‍य प्रस्‍तुत करने से रोक रही है। 
बेटा:   तब तो कांग्रेस ने एक बड़ा राजनैतिक खेल खेल दिया है। हींग लगे न फटकरी, रंग चोखा होय।
पिता:  बेटा, इसे ही तो राजनीति कहते हैं।      ***  

Courtesy: UdaiIndia Weekly (Hindi)