Friday, February 5, 2016

हास्‍य–व्‍यंग — सूट-बूट की सरकार

हास्‍य–व्‍यंग
 कानोंकान नारदजी के
सूट-बूट की सरकार
बेटा:   पिताजी।
पिता:  हां बेटा।
बेटा:   पिताजी, राहुलजी बहुत ग़रीब हैं?
पिता:  क्‍या बकवास कर रहा है तू? राहुल गांधी और ग़रीब?
बेटा:   पिताजी, मुझे कुछ ऐसा शक हो रहा है।
पिता:  क्‍यों?
बेटा:   वह बार-बार मोदी सरकार को सूट-बूट की सरकार कह रहे हैं।
पिता:  बेटा, जो सत्‍ता से बाहर होता है वह ऐसा ही बोलता है। अपना विरोधी खाता-पीता और पहनता किसी को नहीं भाता। उसे दु:ख ही होता है।
बेटा:   पर पिताजी, यह भाषा तो वही बोलता है जिसके पास ऐसी कोई चीज़ नहीं होती और वह उसे पहन या वर्त नहीं सकता हो ।
पिता:  बेटा, तुझे नहीं पता। यह सब पालिटिक्‍स के चोंचले हैं। इसमें वह नहीं होता जो दिखाई देता है और वह होता है जो दिखाई नहीं देता। तू क्‍या समझता है कि जो खादी के कुर्त-पाजामें में घूमते फिरते हैं वह ग़रीब और सादे होते हैं? उनके पास पैसे की कमी होती है?
बेटा:   पिताजी, मुझे तो आपकी बात पर विश्‍वास नहीं हो रहा। आपको तो पता है कि सोनियाजी के पास अपनी एक छोटी सी कार भी नहीं है। क्‍या उनके पास इतने भी पैसे नहीं हैं कि वह अपने लिये एक कार खरीद सकें? उन्‍हें दूसरों का कारों पर ही निर्भर करना पड़ता है।
पिता:  बेटा पार्टी व उनके समर्थकों की बेशुमार कारें उनके लिये हर पल उपलब्‍ध हैं तो फिर अपनी कार खरीद कर फिज़ूलखर्ची करने में समझदारी नहीं है।
बेटा:   तो फिर यह सारा मामला है क्‍या?
पिता:  तुम जब स्‍कूल में पढ़ते थे तो फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता होती थी न? यह सब पालिटिक्‍स का फैंसी ड्रेस है। तुझे बेटा नेहरू-गांधी परिवार का इतिहास ज्ञान नहीं है।
बेटा:   पिताजी, मुझे बताओ, समझाओ।
पिता:  बेटाराहुल के पड़-नाना जवाहर लाल नेहरू तो इतने सम्‍पन्‍न परिवार से थे कि लेखकों ने कहा कि उन पर तो अंगेज़ी की कहावत चरितार्थ होती है कि अपने जन्‍म के समय उनके मुंह में चांदी का चम्‍मच था (He was born with a silver spoon in his mouth) । उनके कपड़े पैरिस से धुल व ड्राईक्‍लीन होकर आते थे।   
बेटा:   फिर भी नेहरूजी बहुत कम सूट-बूट पहनते थे? उनके तो बहुत कम फोटो हैं जहां उन्‍होंने कोट, पैंट और टाई पहनी हो।
पिता:  यही तो मैं तुम्‍हें समझा रहा हूं। बातों पर मत जा। यह ठीक है कि राहुल की दादी श्रीमती इन्दिरा गांधी साड़ी ही पहनती थीं पर उन्‍हें अपने अच्‍छे पहरावे व सलीके के लिये भी जाना जाता था। बेटा, राहुलजी के दादा भी बहुत बड़े रईस थे।
बेटा:   क्‍या राहुलजी के पिताजी बड़े सादा और सूट-बूट से नफरत करने वाले थे?
पिता:  नहीं बेटा। तुम्‍हें पता नहीं है। वह तो राजनीति में ज़बरदस्‍ती से लाये गये थे। उनकी तो राजनीति में कोई रूचि ही नहीं थी। पर हालात की मजबूरी ने उन्‍हें राजनीति में धकेल दिया। अपनी मां की इच्‍छा को वह टाल न सके। राजनीति में आने से पूर्व तो वह इण्डियन एयरलान्‍स में पायलेट थे। पायलटों के शौक तो तुम्‍हें पता ही है।      
बेटा:   तो क्‍या राजनीति में आने के बाद उन्‍होंने सूट-बूट छोड़ दिया?   
पिता:  नहीं। उन्‍होंने बस इतना किया कि राजनीति में आने के बाद सूट सदा बन्‍द गले का ही  पहना। वह उसमें भी बड़े स्‍मार्ट लगते थे। वह हमारे प्रधान मन्त्रियों में सब से स्‍मार्ट थे।
बेटा:   आपका मतलब है कि वह नेताओं का कुर्ता-पाजामा पहरावा नहीं पहनते थे?   
पिता:  ऐसा नहीं बेटा। जब-जब पार्टी की बैठकें होतीं थीं तो वह सदा कुर्ता-पाजामा ही पहनते थे। वह स्‍वयं इतने सुन्‍दर थे कि उनके पहनने से इस पहरावे को भी सुन्‍दरता मिल जाती थी।      
बेटा:   आप तो पिताजी मुझे कन्‍फयूज़ करते जा रहे हैं। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा। राहुलजी की पार्टी केन्‍द्र में दस वर्ष तक सत्‍ता में रही। इसका मतलब क्‍या यह हुआ कि कांग्रेस के मन्त्रियों ने कभी सूट-बूट नहीं पहना?
पिता:  मैं तो बेटा स्‍वयं इस शब्‍दावलि से कन्‍फयूज़ हो रहा हूं।
बेटा:   पिताजी, मैंने तो कांग्रेस के अनेक नेताओं को बढि़या सूट-बूट में देखा है। तब वह बड़े स्‍मार्ट लगते थे। यह ठीक है भारत में डा0 मनमोहन सिंह एक हाथ जैकट की जेब में डालकर तेज़ रफतार ही चलते थे। पर विदेश में तो टीवी पर मैंने उन्‍हें भी सूट और कई बार टाई पहने भी देखा है।
पिता:  और बूट?
बेटा:   बूट तो पिताजी सभी पहनते हैं। नंगे पांव कौन चलेगा? हां गर्मियों में सभी बढि़या चप्‍पल अवश्‍य पहनते हैं।   
पिता:  यह बात तो तेरी ठीक है। मैंने भी ऐसा ही देखा है।       
बेटा:   पिताजी, क्‍या राहुलजी ने कभी सूट-बूट नहीं पहना?
पिता: बेटा, जब से वह सार्वजनिक राजनीति में आये हैं तब से तो नहीं देखा। इससे पहले का मुझे पता नहीं।
बेटा:   उससे पहले? 
पिता:  बेटा, दुनिया की नज़रे तभी उठती हैं जब कोई व्‍यक्ति राजनीति के सार्वजनिक जीवन में पांव रखता है। पहले की कौन परवाह मारता है और न कोई ध्‍यान करता है।
बेटा:   पिताजी, राहुलजी तो साल में दो-चार बार विदेश भी हो आते हैं। क्‍या तब भी वह सूट-बूट नहीं पहनते?
पिता:  यह तो बेटा तब पता चले जब राहुलजी अपने चाहने वालों को यह जानने दें कि वह कहां, किसके पास, क्‍यों और किस देश में गये हैं। इस कारण उनकी कोई फोटों छपती नहीं। वैसे बेटा, आमतौर पर हमारे सभी नेता व शासक जब विदेश जाते हैं तो विदेशी पहरावे का मोह छोड़ नहीं पाते। राहुलजी का पता नहीं। उनकी सोच भी औरों से अलग होने की सम्‍भावना कम ही है।         
बेटा:   पिताजी, यह सूट-बूट और कुर्ते-पाजामें का भेदभाव समझ नहीं आता।
पिता: बेटा, आज़ादी की लड़ाई के समय गांधीजी ने सब को आम आदमी की तरह खादी पहनने पर ज़ोर दिया। परिणामस्‍वरूप जो आज़ादी की लड़ाई में कूदा उसने उस समय कुर्ता-पाजामा व गांधी टोपी पहननी शुरू कर दी। समय बीतने पर यह कांग्रेसियों व आज़ादी के लड़ाकुओं की एक प्रकार से वर्दी ही बन बैठी।     
बेटा:   पितीजी, गांधी टोपी तो अब दिखाई नहीं देती?
पिता:  बेटा, ऐसा हुआ कि जब आज़ादी मिल गई तो कांग्रेसी भाईर्यों ने पहरावे में सादगी बनाये रखने का प्रण लिया। कुर्ता-पाजामा एक प्रकार से सत्‍ताधारी दल की वर्दी व पहचान सी बन गया। पर अब तो खादी कम और दूसरे ही बढि़या कुर्ते पाजामें चलते हैं। ज्‍यों-ज्‍यों सत्‍ताधारियों में सम्‍पन्‍नता छाती गई कुर्ता-पाजामा बढि़या होता गया। गांधी टोपी तो अब कांग्रेसियों के सिर से उतर गई है। कभी-कभार खास मौकों पर अवश्‍य प्रकट हो जाती है।
बेटा:   पिताजी, अब तो बढि़या कुर्ता-पाजामा नेता का ड्रैस ही बन गया है। जो भी राजनीति में कूदता है वह अपनी पैंट-कमीज़ त्‍याग कर बढि़या से बढि़या कुर्ता-पाजामा धारण कर लेता है। वह नेता हो न हो पर ड्रैस से अवश्‍य लगता है।       
पिता:  तूने बिलकुल ठीक कहा। कुर्ता-पाजामा नेता होने की पहचान बन गया है। यह अलग बात है कि यह भेद कर पाना मुश्किल हो गया है कि कौन व्‍यक्ति किस पार्टी से है?       
बेटा:   पिताजी, यह बात तो ठीक है कि जब कोई व्‍यक्ति बढि़या कुर्ता-पाजामा पहने प्रकट हो जाता है तो दूसरा बिन पूछे ही मान बैठता है कि यह महानुभाव कोई नेता तो हैं ही ।
पिता:  इस पर तो मुझे एक पुरानी घटना याद आ गई। शुरू-शुरू में कई लोग इसी प्रकार कुर्ता-पाजामा व गांधी टोपी पहन लेते थे और दूसरे यह समझ बैठते थे कि यह कोई कांग्रेसी नेता है। ऐसे ही एक शहर में एक नया एसडीएम आया। जब वह सुबह आफिस आता तो एक सफेदपोश कांग्रेसी रोज़ उसका अभिवादन करने पहुंच जाता । एसडीएम बडे आदर से उससे हाथ मिलाता। काफी दिन बीत जाने पर एक दिन उसने अपने पीए से पूछ ही लिया कि यह बहुत अच्‍छे कांग्रेसी नेता कौन हैं जो रोज़ मेरे आने पर मेरा अभिवादन करने पहुंच जाते हैं। एसडीएम ठगा सा रह गया जब उसके पीए ने बताया कि यह तो हमारे आफिस का एक चपड़ासी है।      
बेटा:   इसमें तो कोई शक नहीं कि गलतफहमी तो हो ही जाती है। पर पिताजी, यह पहरावा सादगी का रूप तो अवश्‍य है।   
पिता: खाक। इन्‍हीं लोगों ने तो पांच-सितारा संस्‍कृति को जन्‍म दिया। पहनते तो कुर्ता-पाजामा है पर रहते पांच-सितारा ठाठ में। यह तो एक छलावा है।
बेटा:   पर पिताजी, राहुलजी तो ऐसे नहीं हैं। वह तो आम आदमी की तरह का ही सादा जीवन व्‍यतीत करते हैं। ग़रीब की, किसान की, पिछड़े समाज की बात करते हैं। उनके सच्‍चे हितैषी हैं।
पिता:  तू मेरे को बता कि चुनाव से पूर्व तो वह जनजाति परिवारों, अनुसूचित जाति के घरों में घुस जाते थे। चुनाव के बाद भी गये वह? किसान के हितैषी तो बनते हैं पर 10 साल जब कांग्रेस का शासन रहा तो वह समस्‍यायें उन्‍होंने क्‍यों नहीं हल कीं जिनके लिये आज वह सब कुछ न्‍यौछावर करने का दम भरते हैं?        
बेटा:   वह मोदी सरकार को सूट-बूट की सरकार इसी लिये बताते हैं क्‍योंकि वह स्‍वयं सादा रहते हैं। पर पिताजी आपकी बातों से तो यह पता चलता है कि सूट-बूट तो कांग्रेसी व उनके पूर्वज भी पहनते थे। तो आजके सूट-बूट व पिछले शासकों के सूट-बूट में क्‍या अन्‍तर है? 
पिता:  बेटा, यह तो तू अपने प्रिय नेता राहुल जी से ही पूछ।                         *** 
Courtesy: UdayIndia Hindi     

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