Sunday, July 10, 2016

हास्‍य–व्‍यंग बीमारी राजनीतिक और...........

हास्‍य–व्‍यंग
         कानोंकान नारदजी के

बीमारी राजनीतिक और...........

बेटा:   पिताजी।    
पिता:  हां, बेटा।
बेटा:   आपने पढ़ा कि केजरीवाल सरकार के दिल्‍ली के परिवहन मन्‍त्री गोपाल राय ने त्‍यागपत्र दे दिया है?
पिता:  हां बेटा, मैंने पढ़ा है।
बेटा:   पर पिताजी, वह तो बहुत अच्‍छे आदमी हैं। उन्‍होंने तो परिवहन मन्‍त्रालय में बहुत अच्‍छा काम किया था।
पिता:  बेटा, उन्‍होंने मन्‍त्री पद से नहीं, परिवहन विभाग से त्‍यागपत्र दिया है और वह भी स्‍वास्‍थय के कारण।
बेटा:   यदि उनका स्‍वास्‍थय ठीक नहीं है तो वह अन्‍य विभागों की देखभाल कैसे कर पा रहे हैं?
पिता:  यह तो बेटा, मेरी भी समझ के बाहर है। क्‍या उनका स्‍वास्‍थय परिवहन विभाग के कारण खराब हुआ?
बेटा:   पिताजी, इस विभाग के कारण तो उनका स्‍वास्‍थ्‍य खराब नहीं हो सकता। उन्‍होंने तो केजरीवालजी के साथ मिलकर ऑड-ईवन की प्रणाली लागू की थी जिस कारण उनका दावा है कि दिल्‍ली में प्रदूषण की कमी आई।
पिता:  यही तो मैं कह रहा हूं। ऐसे स्‍वस्‍थ वातावरण में वह कैसे बीमार पड़ सकते हैं? 
बेटा:   फिर स्‍वास्‍थय का बहाना समझ नहीं आता। परिवहन विभाग देखने में ही क्‍यों उनकी सेहत आड़े आ रही है? बाकी विभागों के मामले में उनका स्‍वास्‍थ्‍य क्‍यों परेशानी खड़ी नहीं कर रहा? यह कैसे? 
पिता:  बेटा, कई बार ऐसी बीमारी राजनीतिक कारणों से भी हो सकती है।
बेटा:   पिताजी, वह कहीं उस जांच से तो नहीं डर गये जो परिवन मन्‍त्रालय के मामले में उनके विरूद्ध आपराधिक जांच की मांग उठ रही है। जांच के आदेश भी हो गये हैं।
पिता:  यह राजनीतिक पैंतरेबाज़ी होती है बेटा। एक ओर उनसे महकमा ले लिया तो यह सन्‍देश दे दिया कि जांच निष्‍पक्ष होगी और दूसरी ओर वह मन्‍त्री भी बने रहे।
बेटा:   पिताजी, यह तो अजीब बीमारी है। इसका नाम क्‍या है?  
पिता:  बेटा, इस बीमारी का नाम तो किसी भी पद्धति में वर्णित नहीं है — न आयुर्वेद में, न ऐलोपैथी में, न होमियोपैथी में, न यूनानी में और न प्राकृतिक चिकित्‍सा पद्धति में। यह तो बस राजनीति की भाषा के जानकार और इसमें लगे लोग ही जानते हैं।
बेटा:   ऐसे तो कई बीमारियां हैं।
पिता:  जैसे?
बेटा:   पिताजी, आपने देखा है ना कि जब किसी बड़े नेता, अधिकारी या बड़े वयवसायी या उद्योगपति के विरूद्ध आपराधिक मामला बनता है और उसे खतरा हो जाता है कि अब तो उसकी गिरफतारी अवश्‍यमभावी है तो वह अग्रिम ज़मानत के लिये अदालत का दरवाज़ा खड़खड़ाता है। वह उच्‍चतम् न्‍यायालय तक जाता है। जब उसे ज़मानत नहीं मिलती तो या तो वह अज्ञातवास में चला जाता है वरन् घर में स्‍वस्‍थ बैठे महानुभाव का दिल घबराने लगता है। उसे चक्‍कर आने लगते हैं। उसके सीने में यकायक दर्द उठ बैठता है। वह किसी पांच सितारा प्राईवेट अस्‍पताल में दाखिल हो जाता है। पुलिस बेचारी क्‍या करे? उसे गिरफतार न कर कमरे के बाहर पैहरा बैठा दिया जाता है ताकि वह भाग न जाये। खर्च भी सरकार को उठाना पड़ता है। कोई सरकारी अधिकारी जोखिम नहीं उठाना चाहता। कहीं वह सचमुच बीमार हुआ और उसे कुछ हो गया तो मुफत में फंसेगा तो अधिकारी ही। पर ज्‍योंहि उस अपराधी को ज़मानत मिल जाती है तो वह उसी समच तुरन्‍त अस्‍पताल से छुट्टी ले लेता है और सीधा अपने घर जाता है रास्‍ते में सब का अभिवादन स्‍वीकार करते हुये। उस समय उसकी तबीयत भी एक दम ठीक हो जाती है।  
पिता:  बेटा, यह सच्‍चाई तो तूने सच ही बताई।
बेटा:   तो पिताजी, इस बीमारी का नाम क्‍या है?
पिता:  बेटा, यह वीआईपी बीमारी है जो केवल उन्‍हीं बड़े महानुभावों को तुरन्‍त ही उस समय चिपक जाती है जब उन पर कोई आपराधिक मामला बन जाता है। यह उसी क्षण तक उससे चिपकी रहती है जब तक कि वह जेल जाने की बजाय घर भेज दिया जाता है। तब घर में उसकी आरती उतारी जाती है। मिठाईयां बांटी जाती है। उस समय उस के घर में ऐसा माहौल हो उठता है मानों वह कोई बड़ी लड़ाई जीत कर घर लौटा हो या उसे उच्‍चतम् न्‍यायालय ने ससम्‍मान बरी कर दिया हो।
बेटा:   आजकल तो एक और तमाशा भी होता है।
पिता:  क्‍या?
बेटा:   आजकल तो अपराधी अपना मुंह छुपाने के लिये एक कपड़े का मुखौटा सा भी लगा लेते हैं ताकि उनकी कोई फोटो न खेंच सके या पहचान न पाये।
पिता:  यह अजीब विडम्‍बना है बेटा। उन लोगों को अपराध करते समय तो शर्म नहीं आती पर जब पकड़े जाते हैं तो वह अपना मुंह छिपाते फिरते हैं।
बेटा:   पर पिताजी उनके पास शर्म नाम की कोई चीज़ होती तो वह अपराध करते ही क्‍यों?
पिता:  वह अपराध इस आशा और विश्‍वास से करते हैं कि उन्‍हें कोई पकड़ ही नहीं सकता।
बेटा:   और पकड़े जायेंगे तो उन्‍हें आशा रहती है कि वह अपने वकील और पैसे के दम पर  ससम्‍मान बरी हो जायेंगे।
पिता:  यह तो सत्‍य है ही क्‍योंकि बड़ा आदमी अग्रिम ज़मानत पा लेता है और छोटा व ग़रीब मुकद्दमा दायर होते ही तुरन्‍त पकड़ा जाता है। उसे ज़मानत भी नहीं मिलती जिस कारण वह सालों साल जेल में सड़ता रहता है।
बेटा:   यही नहीं पिताजी, कई बड़े महानुभाव अपने सम्‍बंधियों, मित्रों व समर्थकों के लाव-लश्‍कर के साथ अदालत में आत्‍मसमर्पण करने का गौरव प्राप्‍त करते हैं।
पिता:  फिर भी हम बड़े गर्व से कहते हैं कि हमारे प्रजातन्‍त्र में कानून के आगे सब बराबर हैं।
बेटा:   ऐसे तो बीमारियां अनेक प्रकार की हैं हमारे देश में।
पिता:  जैसे?
बेटा:   जैसे जब आपके पोते ने स्‍कूल का काम नहीं किया होता है या उसका उस दिन पढ़ने का मन नहीं होता है तो उसके पेट में या सिर में अचानक असहनीय दर्द उठ बैठती है। मैं जब कहता हूं कि वह ड्रामा कर रहा है तो आप ही उसकी मदद में उतर आते हैं और कहते हैं उसे दर्द की दवाई देकर थोड़ी देर सुला दो। ज्‍योंहि उसके स्‍कूल की बस उसके घर के आगे से निकल जाती है तो वह उठ बैठता है और मां को कहता है कि भूख लगी है।
पिता:  करने को तो बेटा, मेरी बहू भी ऐसा ही करती है। जब वह तेरे से लड़ बैठती है या तू उसकी कोई फरमाईश पूरी नहीं करता तो उसके भी पेट व सिर में इतनी पीड़ा उठ पड़ती है कि वह तो ज़मीन पर ही लेट जाती है। तब तू उसकी सेवा ही नहीं करता बल्कि खाना भी तू ही बनाता है। वह तब तक ठीक नहीं होती जब तक कि या तो तू उससे मुआफी नहीं मांग लेता या उसे वह चीज़ लाकर नहीं देता जिसकी वह जि़द्द कर रही होती है।
बेटा:   पिताजी, यही तो उनके पास एक ऐसा अचूक हथियार है जिसके आगे हम सब अपने रौब का हथियार डालने के लिये मजबूर हो उठते हैं।
पिता:  बेटा, तब तक कोई बात नहीं जब तक कि घर में शान्ति और प्‍यारभाव बना रहे।
बेटा:   पिताजी, यह बीमारी तो ऐसी है जिससे शायद ही कोई अछूता रह पाता हो। जब किसी विद्यार्थी ने अपने स्‍कूल का काम न किया हो तो उसे पता है कि अध्‍यापक से उसे डांट देगा या मार पड़ेगी तो वह भी बीमार पड़ जाता है और स्‍कूल से छुट्टी कर लेता है।
पिता:  ऐसा तो बेटा हर तबके का व्‍यक्ति करता है। जब कार्यालय में किसी को उसके अफसर ने काम दिया हो और वह न कर पाया हो तो उसके सिर में, पेट में या टांग में दर्द उठ जाता है। दूसरे दिन बिना दवाई खाये ही वह ठीक हो जाता है।
बेटा:   यही नहीं पिताजी। यदि किसी ने किसी का उधार वापस करना हो और उसे पता है कि उसका शाहूकार उसकी प्रतीक्षा कर रहा होगा तो वह भी बीमार पड़ जाता है क्‍योंकि वह बिना पैसे उसके सामने नहीं हो सकता।     
पिता:  ऐसे तो बेटा, बहुत कुछ होता है। कई औरतों को तो अपने घर में महमान फूटी आंख नहीं भाता। ज्‍योंहि घर में कोई महमान आ जाता है तो वह अचानक बीमार पड़ जाती हैं। यह स्थिति देख कर या तो अतिथि स्‍वयं ही भाग जाता है या फिर पति उसके आगे गिड़गिड़ा कर अपनी मजबूरी बता देता है। आखिर में महमान ही अपनी इज्‍जत बचाने के लिये स्‍वयं ही घर छोड़ कर कहीं और चला जाता है। उसके घर से रवाना होते ही गृहलक्षमी की तबीयत ठीक हो जाती है और वह खुशी-खुशी घर का सारा काम निपटाने में लग जाती है। 
बेटा:   होने को तो पिताजी, आप भी इस बीमारी से बचे नहीं रह सके हैं।
पिता:  क्‍यों मैंने क्‍या किया?
बेटा:   पिताजी, जब आपको मुझ पर, मेरी मां पर, मेरी बीवी या बहन पर गुस्‍सा आ जाता है तो आपको भी कुछ हो जाता है। आप बिस्‍तर पर लेटे-लेटे ही कह देते हैं कि आपकी तबीयत नासाज़ है और आपको भूख भी नहीं है।
पिता:  बेटा, आखिर हैं तो हम भी इन्‍सान ही ना। इसलिये ग़ुस्‍सा आ ही जाता है। वह व्‍यक्ति तो मानव नहीं जिसे कभी गुस्‍सा नहीं आता और किसी बात पर भी उसका मन दु:खी नहीं होता।
बेटा:   तब पिताजी, हम भी समझ जाते हैं कि आपको हुआ क्‍या है। हम सब को नाग रगड़ने पड़ते हैं। सौ बार मुआफी मांगनी पड़ती है। तब कहीं हमारे देवता स्‍वरूप पिताजी मुस्‍करा देते हैं। अपना गुस्‍सा थूक देते हैं। तब कहीं बड़ी मुश्किल से हमारे पिताजी अपनी बीमारी त्‍याग देते हैं और अन्‍त में एक बढि़या मुस्‍कान बखेर देते हैं। उन्‍हें तब भूख भी लग जाती है और भर पेट खाना भी खा लेते हैं। तब कहीं हमारे मन को तसल्‍ली हो पाती है और घर का माहौल दुरूस्‍त हो पाता है।
पिता:  अब बहुत समय हो गया है। अपनी बकवास बन्‍द कर और जा। मुझे नींद आ रही है।           ***    
Courtesy: Udayindia (Hindi) 





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